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________________ १८८ ] जैन सुवोध पाठमाला--भाग १ का हत्यारा बना! मैने झूठी-सच्ची वाते घडी 11 वारवार धिक्कार है मुके।" उस पश्चात्ताप और सम्यक्त्व दशा मे उसका अायुवध हुआ। उसकी मोक्ष की नीव लगी और वह मरकर १२ वे देवलोक मे पहुंचा। भगवान् की कृपा से इस प्रकार गोशालक कष्टो से बचा। उसके जीवन की रक्षा हुई और एक दिन- 'वह मोक्ष मे पहुँचे'--ऐसी नीव भी लग गई। इधर भगवान् को गोगालक की तेजोलेश्या जला तो नहीं सकी, पर उसकी हवा से भगवान् को रक्तस्राव (मल के साथ लोही का बहाव) की पीडा हो गई । वीतराग भगवान् उसे शान्त भाव से सहते रहे। रेवती को सम्यक्त्व-प्राप्ति वहाँ से विचरते हुए भगवान् छह मास मे 'मेंढिक' गाँव मे पधारे। वहाँ 'सिंह' नामक एक मुनि को भगवान् की इस पीडा से बहुत ही रोना आ गया। तब भगवान् ने उसे बुलाकर सान्त्वना दी और कहा-'मैं अभी १५॥ वर्ष और सुखपूर्वक जीऊंगा, अतः चिन्ता न करो। तुम यहाँ की 'रेवती' गाथापली के यहाँ जायो। उसने मेरे लिए जो 'कोलापाक' बनाया है, वह न लाते हुए, जो घोडे की वायुनाश के लिए 'बिजौरापाक' बनाया है, वह लाओ।' सिंह मुनि उसके यहाँ पधारे। रेवती ने कोलापाक देना प्रारम्भ किया, तो मुनिराज ने उसे दोषी बताकर उसका निषेध करके बिजौरापाक माँगा। रेवती को वडा ही आश्चर्य हुआ। उसने पूछा-'आपको यह कैसे जानकारी हुई कि यह दोषी है ?' मुनि ने उत्तर दिया-'भगवान् से।' रेवती को यह जानकर
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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