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कथा-विभाग-१. भगवान् महावीर
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___ 'मैं अभी सोलह वर्ष और सुखपूर्वक जोऊँगा, परन्तु तू स्वय सात दिन मे दाह-ज्वर द्वारा मर जायगा।'
यह देखकर कुछ बुद्धिहीन कहने लगे कि 'श्रावस्ती नगरी __ मे दो तीर्थकर पायस मे कहते है- 'तूं पहले मरेगा, दूसरा कहता है-नही; तूं पहले मरेगा।' कौन जाने, उनमे कौन सच है और कौन झूठ है ?' परन्तु वुद्धिमान जानकार जानते थे कि 'भगवान् महावीर सच्चे हैं और गोशालक झूठा है।'
गोशालक को हार भगवान् पर पूरी शक्ति से तेजोलेश्या का प्रयोग करने के कारण जब गोशालक शक्तिहीन हो गया, तब भगवान ने अपने सन्तो को आज्ञा दी कि 'अब गोशालक से चर्चा करो ।' तब सन्तो ने उससे चर्चा आरम्भ की। अपने आपको सर्वज्ञ व तीर्थकर बताने वाला गोशालक उनका कोई उत्तर नहीं दे सका तथा तेजोलेश्या की शक्ति पूर्ण नष्ट हो जाने के कारण वह उन चर्चा करने वाले सन्तो को जला भी न सका। इससे गोशालक अत्यन्त ऋद्ध होकर अाँखे लाल करके दाँत किटकिटाने लगा और हाथ-पैर पटकने लगा। यह देख गोशालक के कई प्रमुख साधु और श्रावक गोशालक को झूठा और भगवान् को सच्चा समझ गोशालक को छोड भगवान् के सघ मे आ मिले।
अन्तिम घड़ियाँ सुधरो तब गोशालक वहाँ से चल दिया। सातवें दिन तक दाह-ज्वरयुक्त वह झूठी-सच्ची बाते करके अपने को सही बताता रहा, परन्तु अन्त मे मृत्यु के समय उसकी बुद्धि सुधरी। उसे सम्यक्त्व प्राप्त हुई। उसे बहुत पश्चात्ताप हुआ। "अरे रे, मैंने मेरे महोपकारी भगवान् 'की अाशातना की। मैं सांधुनो