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१८२ ] जैन सुबोध पाठमाला-भाग १ पाते। पर भगवान् को छद्मस्थ अवस्था मे कई उपसर्ग आये, जिनमे सगम जैसे महा कठिनतम उपसर्ग भी थे। पर भगवान् ने उन आये हुए सभी उपसर्गों को निर्भय होकर शान्ति के साथ धैर्यतापूर्वक सहे। (मेरु पर्वत का कम्पन किया, बाल-अवस्था मे भी देव द्वारा की गई परीक्षा मे भयभीत नही हुए।) इस कारण से भगवान् का नाम देवतायो ने 'महावीर' रखा। भगवान् का यही नाम आगे चलकर अत्यन्त प्रसिद्ध हुआ।
केवलज्ञान को प्राप्ति वहॉ से विचरते हुए भगवान् 'जम्भक' गॉव के बाहर 'ऋजुबालिका' तट के ऊपर रहे श्यामाक गाथापति के खेत मे पधारे और वहाँ साल-वृक्ष के नीचे गोदोह जैसे कठिन अासन को लगाकर वेले के तप मे अातापना ले रहे थे। उस समय, जव कि भगवान् को सर्वथा प्रमादरहित तप करते और उपसर्ग सहते १२ वर्ष, छ महीने और एक पक्ष (१५ दिन) हो गए, तव वैशाख शुक्ला दशमी के दिन पिछले प्रहर को भगवान् को केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ। उस समय कुछ समय तक के लिए सर्वत्र प्रकाग हुआ और सभी नारकीय आदि दुखी जीवो को शान्ति मिली।
प्रथम देशना विफल
केवल ज्ञान उत्पन्न होने के पश्चात् सभी इन्द्र अपने परिवार और देवों सहित भगवान् को वन्दन करने और वाणी सूनने के लिए आये। समवसरण के कुतूहल से आकृष्ट कई मनुष्य और विशिष्ट तिर्यंच भी वहाँ एकत्रित हुए। भगवान ने अतिशयपूर्ण उपदेश सुनाया, परन्तु किसी ने श्रावक या साधुधर्म स्वीकार नहीं किया।