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कथा विभाग-१ भगवान् महावीर [ १८३ तीर्थंकरो की पहली वाणी मे कोई न कोई व्रत-धर्म अवश्य स्वीकारते है, परन्तु भगवान् की वह पहली वाणी सफल न हुई। यह इसकी प्रदर्शक हुई कि 'भगवान् के शासन मे उपदेशको का उपदेश सफल कम होगा।' ऐसी घटना कभी अनन्त काल से घटती है।
श्री इन्द्रभूति व चन्दनबालाजी को दीक्षा
जम्भक गाँव से विहार करके भगवान् 'पापापानगरी' पधारे। वहाँ 'श्री इन्द्रभूति' आदि ग्यारह गरगधर दीक्षित हुए। ( विस्तृत वर्णन के लिए २ श्री इन्द्रभूति की कथा देखो।) महासती 'श्री चन्दनबालाजी' भी वही दीक्षित हुई और अनेको श्रावक-श्राविकाएँ भी वहाँ बनी। उसके बाद भगवान् वहाँ के जनपद (देश) मे विहार करने लगे।
श्री ऋषभदत्त व देवानन्दा को दोक्षादि
भगवान् विचरते हुए एक बार ब्राह्मणकुण्ड' ग्राम में पधारे। वहाँ ऋषभदत्त ब्राह्मण और देवानन्दा ब्राह्मणी भी भगवान् के दर्शनार्थ आई। .
'मेरे स्वप्न त्रिशला के यहाँ गये'--इमसे देवानन्दा को यह अनुमान था कि 'भगवान् पहले मेरी कुक्षि मे ८२॥ रात्रि बिराजे थे।' अत उसे भगवान् के दर्शन पाकर रोमांच हो याया। स्नेह (तेल) से तलने पर जैसे पदार्थ तत्काल फूल जाते हैं, वैसे ही पुत्र स्नेह से देवानन्दा का शरीर फूल गया। स्नेह (पानी) के वढने पर जैसे कमल तत्काल ऊपर उठ जाता है, वैसे ही पुत्रस्नेह से देवानन्दा के स्तन ऊपर उठ गये, उनमे दूध भर आया ।