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________________ कथा-विभाग- १ भगवान महावीर [ १८१ पूछा। भगवान् के मौन रहने से क्रुद्ध होकर उसने भगवान् के दोनो कानो मे दो कट-शलाकाएँ (चटाई की शलियाँ) डाल दी और किसी को वे न दिखे- इस प्रकार उन्हे बाहरी भाग से काट कर सम कर दी। परन्तु भगवान् ने उस समय नि श्वास तक न छोडा। पूर्व भव मे इस ग्वाला के जीव के कान मे भगवान् ने उकलता शीशा डलवाया था, जिसके कारण भगवान् को यह उपसर्ग मिला। सिद्धार्थ व खरक द्वारा वंय्यावृत्य वहाँ से विहार कर भगवान् 'अनापापुरी' मे 'सिद्धार्थ' वगिक के यहाँ भिक्षार्थ पधारे। वहाँ पर बैठे खरक नामक वैद्य ने भगवान् के कानो मे रही हुई कट-शलाकाओ को देखकर सिद्धार्थ को बतलाईं। सिद्धार्थ ने खरक को उन्हे निकाल देने के लिये कहा। फिर सिद्धार्थ ओर खरक वैद्य ने भगवान को कट-गलाकाएं निकालवाने की प्रार्थना की, परन्तु भगवान् ने स्वीकार नही की। भगवान् पारणा करके गाँव के बाहर जाकर कायोत्सर्ग करके खडे हो गये। तब सिद्धार्थ और खरक ने वहाँ जाकर ध्यानस्थ खडे भगवान् को सुलाकर उनके कानो से उन्हे निकाल दी और सरोहणी औषध लगाकर भगवान् के कानो के घाव पूर दिये। वह ग्वाला मर कर सातवी नरक गया और सिद्धार्थ और वैद्य देवलोक गये। महावीर नाम का हेतु __“जो भी तीर्थकर होते हैं, प्राय वे तप द्वारा ही चार घाति कर्म क्षय करते हैं। उन्हे छद्मस्थ अवस्था मे प्राय. 'उपसर्ग नही
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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