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________________ जैन सुवोध पाठमाला--भाग १ मन्दिर की याचना की। गाँव के लोगो ने कहा- 'इस मन्दिर का शूलपाणि यक्ष अपने मन्दिर मे रात्रि विश्राम करने वाले को मार डालता है, अत. आप यहाँ न ठहरे।' भगवान् जान रहे थे कि 'यह बोध पाने वाला है, अत. उन्होने कहा-अस्तु, आप इसका विचार न करे, मुझे आज्ञा दे दे।' एक पुरुष चातुर्मासवास के लिए दूसरी वसति देने लगा, परन्तु भगवान् उसे स्वीकार न करके वही ठहरे । सध्या-पूजा के लिए प्राये हए इन्द्रशर्मा पूजारी ने भी भगवान् को वहाँ न ठहरने की बहुत प्रार्थना की, परन्तु भगवान् ने उसकी प्रार्थना स्वीकार नहीं की। शूलपाणि यक्ष को यह देख वहत ही क्रोध पाया-'गाँव । के लोग और पूजारी के कहने पर और दूसरी वसति मिलते हुए भी यह यही ठहरा, अत इसको इसका अच्छा फल दिखाना चाहिए।' उसने सूर्यास्त होते ही भीम अट्टहास से भगवान् को । भयभीत करने का प्रयत्न किया, पर वह सफल नही हुया । तब उसने १. हाथी, २ पिशाच और ३. सर्प के रूप से उपसर्ग किये। (इन उपसर्गों के विस्तृत वर्णन के लिए कामदेव की कथा देखो।) इससे भी जब वह भगवान् को डिगा न सका, तब उसने क्रमश भगवान् के १. शिर, २. कान, ३. आँख, ४. नाक, ५ दाँत, ६ नख और ७ पोठ- इन सात अगोपांगो मे ऐसी भयकर वेदना उत्पन्न की, जिस एक-एक वेदना से सामान्य मनुष्य मर सकता था, परन्तु उन वेदनाओ मे भी भगवान् निर्भय, शान्त और दृढ रहे। तब वह यक्ष भगवान् की महत्ता जानकर उनके पैरो गिर पड़ा और उसने बार-बार क्षमा याचना की। अन्त मे वह बोध पाकर धर्मी वना और उसने सदा के लिए हिंसा छोड़ दी।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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