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कथा-विभाग-१. भगवान् महावीर [ १६५ किया । इस प्रकार भगवान् छद्मस्थ (केवल ज्ञान रहित) अवस्था मे भी वीतराग के समानरहे। धन्य है, ऐसे वीतराग प्रभु को ! -
प्रथम पारगा दूसरे दिन प्रात काल 'कोनाक' ग्राम मे 'बहले' नामक ब्राह्मण के यहाँ भगवान् का परमान्न (खोर) से पारणा हुया। देवो ने तब पञ्च दिव्य प्रकट किये। पारणा करके भगवान् वहाँ से चले गये और ममता यादि जन्य रुकावट रहित अप्रतिबन्ध विहार करने लगे।
उपसर्ग प्रारंभ दीक्षा के समय भगवान् के शरीर पर देवादिको ने चन्दनादि का लेप किया था। चार मास से अधिक समय तक उसकी गध से आकृष्ट भौंरे भगवान् के शरीर मे तेज दंश देते रहे, परन्तु भगवान् उन्हे समतापूर्वक सहन करते रहे। कुछ विलासी युवक भगवान् से गन्धपुटी माँगते और भगवान् के मौन रहने पर क्रोध मे आकर प्रतिकूल (इन्द्रिय मन शरीर को भले न लगने वाले) उपसर्ग (कष्ट) देते। कुछ स्त्रियाँ उनके दिव्य रूप को देखकर दुर्भावना प्रकट करती। कोई नग्न होकर प्रालिगनादि भी करती। परन्तु भगवान् उन प्रतिकूल-अनुकूल सभी उपसर्गों को सहते हुए अहिसा व ब्रह्मचर्य आदि का पालन करते रहे। शूलपाणि का उपसर्ग तथा उसे सम्यक्त्व की प्राप्ति
सबसे पहले चातुर्मास के लिए भगवान् 'अस्थिक' ग्राम पधारे। वहाँ उन्होने स्थान के लिए 'शूलपारिग यक्ष' के