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___ १६४ ] जैन सुवोध पाठमाला-भाग १
कर सध्या के समय आया और भगवान् के पास बैलो को छोड कर गाये दुहने चला गया। इधर वैल भी चरने के लिये दूसरी ओर चले गये। लौटने पर ग्वाले ने वेलो को नही देख कर भगवान् से पूछा - "आर्य | वैल कहाँ है ?" भगवान् मौन रहे । तव वह-'यह (भगवान्) जानता नही होगा'---यह सोचकर वन मे वैलो को ढूंढने गया। इधर वैल चरते चरते
और रात पूरी होते-होते पून. भगवान के पास आ गये। उधर बैलो को ढूंढते-ढूंढते जव ग्वाला भी पून प्रात.काल भगवान् के निकट आया और बैलो को भगवान् के पास वहाँ पाया, तव उमे बहुत क्रोध आया। उसने सोचा- "इसने जानते हुए भी सारी रात मुझे व्यर्थ घुमाया।" वह रस्से का कोड़ा बना कर भगवान को मारने दौडा। उसी समय शक्रेन्द्र अवधि-ज्ञान से यह जान कर वहाँ पहूँचे और ग्वाले को हटाया।
फिर भगवान् को निवेदन किया कि "भगवान् । अभी आपको केवल-ज्ञान उत्पन्न होने मे १२॥ वर्प (कुछ कम १३ वर्ष) समय लगेगा । जब-पहली ही रात्रि को आपको ऐसा उपसर्ग हुआ है, तो इतने समय मे आपको न जाने कितने उपसर्ग आयेंगे ? इसलिए मैं केवल-ज्ञान उत्पत्ति तक आपकी सेवा मे आपकी सहायता के लिये रहना चाहता हूँ। भगवान् ने कहा- "देवेन्द्र । न कभी ऐसा हुआ, न कभी ऐसा होता है तथा न कभी ऐसा होगा किकोई तीर्थंकर देवेन्द्र, असुरेन्द्र या नरेन्द्र की सहायता से केवल-ज्ञान उत्पन्न करे। वे स्वय के पराक्रम से ही केवल-ज्ञान उत्पन्न करते हैं।" शक्रेन्द्र भगवान के इन वचनो को सुन कर निराश हो लौट गये। तीर्थंकर ऐसे पराक्रमी हुआ करते हैं।
अपने पर कोड़ा उठाने वाले पर भगवान् ने द्वेष नही किया तथा अपनी रक्षा के लिए आये हुए इन्द्र पर राग नही