SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कथा-विभाग-१. भगवान् महावीर [ १६३ एक प्रहर तक वार्षिक दान देना प्रारम्भ किया। इन्द्र की आज्ञा से जम्भक जाति के देवों ने भगवान् के भण्डार भर दिये। नित्य एक करोड आठ लाख स्वर्णमुद्रा दान देने की गणना से भगवान् ने एक वर्ष मे तीन अरब ८८ करोड ८० लाख स्वर्णमुद्राएँ दान मे दी। इस प्रकार भगवान् दान धर्म प्रकट किया और जैनधर्म का गौरव बढ़ाया। दीक्षा वार्षिक दान की समाप्ति पर नन्दीवर्धन को दो वर्ष तक और गृहवास में रहने का दिया हुआ वचन पूर्ण हो गया, तब विनयशील भगवान् ने पुनः नन्दीवर्धन से दीक्षा की अनुमति मागी। विवेकी नन्दीवर्धन ने बडे दुःख के साथ अनुमति दी। राजा नन्दिवर्धन और इन्द्रो ने मिल कर बडे समारोह के साथ भगवान् का निप्क्रमरण (गृहवास से निकलने का) उत्सव मनाया। भगवान् सभी लौकिक वस्तुएँ परित्याग कर तथा सबधियो को धनादि बॉट कर ज्ञात-खण्ड उद्यान मे पधारे। वहाँ सब आभूषण त्याग कर छ? (वेले) के तप मे पञ्च-मुष्ठि-लोच करके भगवान् ने मृगशीर्ष कृष्णा १० को पिछले प्रहर मे दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा लेते ही भगवान् को मन.पर्यव ज्ञान उत्पन्न हुआ। दीक्षा हो जाने पर नन्दिवर्धन व इन्द्रादि सब भगवान् को नमस्कार करके स्व-स्थान पर चले गये। इधर भगवान् वहाँ से कूर्मग्राम को विहार कर गये। ग्वाले का उपसर्ग और इन्द्र सहायता अस्वीकार वहाँ पहुँच कर गांव के बाहर भगवान् कायोत्सर्ग करके खटे हो गये। वहाँ एक ग्वाला सारे दिन बैलो को हल मे चला
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy