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होकर शीघ्र ही छोटा बन गया । उसने शक्रेन्द्र के वचन को सत्य माना और भगवान् को अपने ग्राने यादि का कारण
चला गया ।
जैन मुन्रोध पाठमाला – भाग १
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बताकर तथा क्षमा मांगकर स्वस्थान पर
ऐसी थी भगवान् की बाल अवस्था की निर्भयता ।
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लेखशाला में
जव भगवान् कुछ अधिक ग्राठ वर्ष के हो गये, तब महाराजा सिद्धार्थ इस बात का विचार किये बिना ही कि 'भगवान् जन्म से अवधि ज्ञानी होते हैं, भगवान को बड़े समारोह के साथ लेखगाला मे पढने को ले गये । प ण्डतजी भी उनको लेख प्रारम्भ कराने की सामग्री जुटाने लगे । जव शक्रेन्द्र को यह जानकारी हुई, तो वे वहाँ ब्राह्मण का रूप लेकर ग्राये और भगवान् को पण्डित योग्य श्रासन पर बिठा कर उनसे ऐसे विकट प्रश्न पूछे, जिनके सम्बन्ध मे पण्डित को भी ग्रव तक समय या । पर भगवान् ने उस वाल - ग्रवस्था मे भी उनका उत्तर बहुत सुन्दरता से तथा शीघ्रता से दिया । यह देखकर वहाँ के सभी उपस्थित लोग चकित रह गये । तव केन्द्र ने लोगो को ज्ञान कराया कि भगवान् जन्म से प्रवधि- ज्ञानी होते है | अन्त मे पण्डित ने वडे सम्मान से भगवान् को वहाँ मे विदाई दी और सिद्धार्थ उन्हें अपने घर लेकर आये | ऐसा था भगवान् का वाल-ग्रवस्था का ज्ञान |
यशोदा का पाणिग्रहण
धीरे धीरे जब भगवान् युवावस्था मे ग्राये, तब मातापिता ने लग्न के लिए वहुत आग्रह किया । उस समय भोगफल देने वाले कर्मों के उदय को जानकर भगवान ने यशोदा