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कथा-विभाग-१ भगवान् महावीर
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इस प्रकार भगवान् चम्पक वृक्ष की भॉति क्रमशः सुखपूर्वक बढने लगे।
बालक वर्धमान को देव-परोक्षा
आठ वर्ष के होने से पहले की बात है। भगवान् यद्यपि क्रीडा की इच्छारहित थे, पर समान वय वाले बालको के प्रागह से वे नगर के बाहर खेलने के लिऐ गये। वहाँ वृक्ष पर चढने-उतरने का खेल प्रारम्भ हुना।
__इधर देवलोक में केन्द्र ने सभा के बीच यह प्रशसा की ~-'भगवान् यद्यपि इतने छोटे बच्चे हैं, परन्तु उन्हे कोई भयभीत नही कर सकता।' यह सुनकर एक मिथ्यादृष्टि देव इन्द्र के वचनो को असत्य करने के लिए वहाँ आया और शयकर सर्प का रूप बना कर जहाँ वर्धमानादि खेल रहे थे, उस वृक्ष को लिपट गया। सभी बच्चे उस भयकर सर्प को देखकर भयभीत हुए और भागने लगे। परन्तु निर्भय वर्धमान ने उस भयकर सर्प को हाथो से उठाया और एक ओर ले जा कर रख दिया। यह देखकर वालक फिर से लौट आये और वर्धमान के साथ कन्दुक (गेंद) का खेल खेलने लगे। उससे यह पण (गर्त) थी कि जो हारे, वह बैल-घोडा बनेगा और जीतने वाला ऊपर चठेगा। देव भो एक वालक का रूप बनाकर साथ ही खेलने लगा। कुछ क्षण मे ही वह जान-बूझ कर हार गया और वोला--- 'वधमान ने मुझे जोत लिया है, इसलिए ये मेरे कन्धे पर चढे ।' वधमान उसके कन्धे पर चढे । देव ने वर्धमान को भयभीत करने के लिए तत्काल सात-आठ ताड जितना ऊंचा शरीर बना लिया। तब भगवान् ने उसकी वास्तविकता जानकर उसकी पीठ पर वज्र के समान मुट्ठी-प्रहार किया। उससे वह पीड़ित