________________
१५८ ] जन सुबोध पाठमाला भाग १ रख दिया तथा दी हुई अवस्थापिनो निद्रा हटाकर वे अपने स्थान को चले गये।
मिद्धार्थ द्वारा जन्मोत्सव
महाराजा सिद्धार्थ ने प्रात काल होने पर भगवान् का जन्मोत्सव मनाने का आदेश दिया। वन्दी छोडे गये। मानउन्मान (तोल-माप) मे वृद्धि की गई। नगर को सजाया गया। शुल्क-कर आदि रोके गये। नाट्य वाद्य, गीत, नृत्य प्रादि के साथ दस दिन विताये गये। पुरजनो ने हर्प से सिद्धार्थ गजा को सहस्रो लाखो स्वर्ण-मुद्राएँ आदि भट की। राजा ने भी प्रतिदान में इसी प्रकार दिया। ग्यारहवे दिन अच-कर्म निवारण करके बारहने दिन महागज ने सभी नाति मित्र आदि को भोज दिया और उनके सामने अपने पूर्व निश्चय को प्रकट करते हुए भगवान का नाम वर्द्धमान रक्खा ।
पाँच धायपूर्वक पालन
उसके पश्चात् महाराजा सिद्धार्थ ने भगवान् के मरक्षण के लिए ये पाँच धाएँ रक्ती-१ दूध, अन्न यादि पिलाने खिलाने वाली, २. स्नान, मजन, शुद्धि प्रादि करने वाली, ३ याभूपण, वन्न, केश, पुष्प आदि का अलकार करने वाली, ४ क्रीडा कराने वाली और ५ अक (गोद) मे रखने वाली। ये सब धाये गिद्धार्थ ने अपने हर्प और कुल-रीति आदि के लिए ही रक्खी। क्योकि शक्रन्द्र भगवान् के अगूठे मे अमृत भर देते है और भगवान् उस अगूठे को ही चूसते है तथा भगवान् के गरीर मे किसी प्रकार अगुचि न तो रहती है, न लगती है तथा भगवान् वाल-अवस्था मे भी रोते आदि नही है।