________________
कथा विभाग-१ भगवान् महावीर [ १५५ १४ चौदह ही स्वप्न त्रिशला क्षत्रियाणी के पास चले गये।' और उमी रात्रि को त्रिशलादेवी को वे चौदह ही स्वप्न आये । महारानी ने उन स्वप्नो को सिद्धार्थ महाराज को जाकर सुनाये । महाराजा ने कहा-कि तुम्हे इसके फल मे एक ऐसा पुत्र प्राप्त होगा, 'जो आगे चल कर राजा बनेगा।' स्वप्न का फल सुनकर रानी प्रसन्न हई। उसने स्वप्न फल नष्ट न हो, इसलिए स्वप्न जागरण किया। महाराजा ने प्रात काल स्वप्न-पाठको को वुलाया और सम्मान के साथ उनसे स्वप्न का फल पूछा। उन्होने कहा-महाराज | ये चौदह स्वप्न तीर्थकर या चक्रवर्ती की माता को याते हैं। अत महारानी त्रिशला भविष्य मे तीर्थकर या चक्रवर्ती बनने वाले पुत्र को जन्म देगी। यह स्वप्त-फल सुनकर सभी को प्रसन्नता हुई। सिद्धार्थ ने स्वप्न-पाठको को सात पीढियो तक चले, इतना धन आदि देकर बिदा किया ।
वर्द्धमान नाम का हेतु
जिस रात्रि को भगवान् त्रिशला के गर्भ मे आये, तभी से शनेन्द्र की प्राज्ञानुसार जृ भक जाति के देवो ने सिद्धार्थ के यहाँ सोना-चाँदी का सहरण किया तथा सिद्धार्थ के धन, धान्य, राज्य, सेना, कोप अन्त पुर, यश, सत्कार ग्रादि की भी बहुत वृद्धि हुई। जिससे राजा रानी दोनो ने यह निश्चय किया कि हम अपने इस पुत्र का नाम 'वर्द्धमान' देगे। ऐसा था भगवान् का पुण्य प्रभाव ।
माता के प्रति अनुकंपा
(उसमे कुछ समय पीछे की बात है. गर्भ मे रहे हुए भगवान् महावीर स्वामी ने 'अंपगी माता को कष्ट न हो' इस