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________________ तत्त्व विभाग-~-बारहवाँ बोल 'सम्यक्त्व की छह भावना' [ १४३ अथवा दुकान : धर्म-रूप क्रयारणक के लिए सम्यक्त्व-रूप दुकान (पापण) के समान है, क्योकि सम्यक्त्व-रूप दुकान के बिना धर्म-रूप क्रयाणक की रक्षा नहीं हो सकती। ४ पृथ्वी : धर्म-रूप जगत के लिए सम्यक्त्व पृथ्वी के समान है, क्योकि सम्यक्त्व-रूप पृथ्वी के बिना धर्म-रूप जगत टिक नही सकता। ५. भाजन (पात्र) : धर्म-रूप खीर के लिए सम्यक्त्व पात्र के समान है, क्योकि सम्यक्त्व-रूप भाजन के बिना धमरूप खोर ग्रहण नहीं की जा सकती। ६. निधि (पेटी): धर्म-रूप धन (आभूषणादि) के लिए सम्यक्त्व पेटी के समान है, क्योकि सम्यक्त्व-रूप पेटी के बिना धर्म-रूप धन की रक्षा नही हो सकती। -अनेक सूत्र तथा प्रवचन सारोद्ध र से। इस स्तोक मे तीन-तीन के बोल दो, चार का बोल एक, पांचपांच के बोल तीन, छह-छह के बोल चार, पाठ का बोल एफ तथा दस का बोल एक है। ३४२=६+४४१%D४+५४३= १५, +६x४-२४.+८x१%D८+१०x१=१०। योग ६७ । सम्यवत्व के ६७ बोल समाप्त ।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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