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१४२ ] जैन सुवोध पाठमाला--भाग १ भुगताता हो या कर्म भोगे विना छूट जाते हो~यह वात भी नही है।
५. मोक्ष है • भव्य जीव पाठ कर्मो का क्षय करके मोक्ष प्राप्त करते है, परन्तु भगवान् सदा से, भगवान् हो या ससारी, सदा ससारी ही बने रहते हो~-ऐसी वात नही है ।
६. मोक्ष का उपाय : (क) सम्यग्जान (ख) सम्यग्दर्शन (ग) सम्यक्चारित्र और (घ) सम्यक्तप-ये चार मोक्ष के उपाय हैं। परन्तु (क) अज्ञान (ख) मिथ्यात्व (ग) अव्रत और (घ) भोग या वाल तप-ये मोक्ष के उपाय नही है।
-सूत्रकृतांग अध्ययन २१ से।।
बारहवाँ बोल : 'सम्यक्त्व को छह भावना'
भावना : (जैसे भावना देने से औषधियाँ पुष्ट वनती हैं, वेसे ही)
जिस भावना से सम्यक्त्व पुष्ट बने, उसे 'सम्यक्त्व की
भावना' कहते हैं।
१. मूल (जड़) : धर्म (चारित्र धर्म) रूप वृक्ष के लिए सम्बवत्व जड के समान है, क्योकि सम्यक्त्व-रूप जड के विना धर्म-रूप वृक्ष उत्पन्न नहीं हो सकता।
२. द्वार : धर्म-रूप नगर के लिए सम्यक्त्व द्वार के समान है, क्योकि सम्यक्त्व-रूप द्वार के विना धर्म रूप नगर मे प्रवेश नही हो सकता।
३. नींव (प्रतिष्ठान) : धर्म-रूप प्रासाद (महल) के "लिए सम्यक्त्व नीव के समान है, क्योकि सम्यवत्व-रूप नीव के विना वर्म रूप प्रामाद स्थिर नही रह सकता।