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जैन सुबोध पाठमाला-भाग १
परिशिष्ट
तेरहवाँ बोल : 'सम्यक्त्व को दस रुचि'
रुचि : (जैसे प्रीपधि से भोजन की अरुचि मिट कर भोजन को
रुचि उत्पन्न होती है, वैसे ही) जिस बात से मिथ्यात्व की रुचि हटकर 'सम्यवत्व की रुचि' उत्पन्न हो अर्थात् सुंदव, सुगुरु, सुधर्म के प्रति रुचि उत्पन्न हो, उसे 'सम्यक्त्व की मचि' कहते है।
१. निमर्ग रुचि : किसी को जाति-स्मरणादि से अपने आप सम्यक्त्व उत्पन्न होती है।
२. उपदेश रुचि : किसी को सर्वज या छद्मस्थ के उपदेश सुनने से सम्यक्त्व उत्पन्न होती है।
३. आज्ञा रुचि : किसी को देव और गुरु की आज्ञा मानने से सम्यक्त्व उत्पन्न होती है।
४. सूत्र रुचि : किसी को सूत्रो का स्वाध्याय करने से सम्यक्त्व उत्पन्न होती है।
५. बीज रुचि : किसी को वीज-रूप एक ही पद पर विचार करते रहने से सम्यक्त्व उत्पन्न होती है।
अभिगम : किसी को सूत्रो के अर्थ पढने से सम्यक्त्व उत्पन्न होती है।
७. विस्तार रुचि : किसी को द्रव्यो और पर्यायो का, प्रमाणो और नयो से विस्तारपूर्वक अध्ययन करने से सम्यक्त्व उत्पन्न होती है।