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१४० ] जैन सुबोध पाठमाला-भाग १ के देव तथा वेश, श्रद्धा या पाचार से अन्य मती बने हए जैनसाधुग्रो से पालापादि करना पडे, तो सम्यक्त्व को प्रवृत्ति मे दोप लगता है, पर सम्यक्त्व भग नहीं होता।
--उपासक दशांग अध्ययन १ से। दसवाँ बोल : 'सम्यक्त्व की छह यतना' यतना : (जैसे असुशील पुरुषो के ससर्ग से वचने से पतिव्रता
सुशीला स्त्री के शोल की रक्षा होती है, वमे ही) जिस ससर्ग से वचने से सम्यक्त्वी के सम्यक्त्व की रक्षा हो, उसे 'सम्यक्त्व की यतना' कहते हैं।
१. वंदना : अन्य मत के गुरु, अन्य मत के देव तथा वेश, श्रद्धा या आचार से अन्य मती बने हुए जेन-साधुओ की स्तुति (गुणग्राम) न करे।
२ नमस्कार : अन्य मत के गुरु, अन्य मत के देव तथा वेश, श्रद्वा या आचार से अन्य मती बने हुए जैन-साधुओ को नमस्कार न करे।
३. पालाप : अन्य मत के गुरु, अन्य मत के देव तथा वेश, श्रद्धा या आचार से अन्य मतो बने हुए जैन-साधुग्रो से बिना उनके पहले बुलाये स्वय पहले एक बार भी न बोले ।
४. सलाप : अन्य मत के गुरु, अन्य मत के देव तथा वेश, श्रद्धा या प्राचार से अन्य मती बने हुए जैन-साधुग्रो से विना उनके दूसरी-तोसरी वार वुलाये, उनसे स्वय बार-बार भी न बोले।
५. दान : अन्य मत के गुरु, अन्य मत के 'देव तथा वेश, श्रद्धा या प्राचार से अन्य मती बने हुए जन-साधुम्रो नउ को एक बार भी दान न दे।