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__ १३८ ] जन सुबोध पाठमाला--भाग १
१. बहुश्रुत (प्रावचनी) : जिस काल मे जितने सूत्र उपलब्ध हो, उनके रहस्य (मर्म) का जानकार हो।
२. धर्मकथी : धर्म-कथा सुनाने मे कुशल (चतुर) हो।
३. वादी : प्रतिज्ञा, हेतु, दृष्टान्तादि से अन्य मत का खण्डन करके जैन मत की स्थापना करे।
४. नैमित्तिक : निमित्त के द्वारा भूत-भविष्य-वर्तमान काल की वात जाने।
५. तपस्वी : मासक्षमणादि उग्र तप करे, ब्रह्मचर्यादि कठोर व्रत धारण करे।
६. विद्या वान् : प्रज्ञप्ति, रोहिणी आदि अनेक विद्यायो का जानकार हो ।
७. लब्धिसम्पन्न : वैक्रिय लब्धि, आहारक लब्धि आदि अनेक लब्धियो का धारक हो। ८. कवि : शास्त्रानुसार गद्य-पद्य की विशिष्ट रचना करे।
-~-प्रवचनसारोद्धार से।
नवमाँ बोल : 'सम्यक्त्व के छह प्राकार (प्रागार)'
प्राकार (आगार) : सम्यक्त्व की यतना (रक्षा) के लिए धारण
किये जाने वाले अभिग्रह (निश्चय) मे रक्खी जाने वाली छूट को 'सम्यक्त्व के
आकार (आगार)' कहते है। १. राजाभियोग : राजा की आज्ञा, दबाव या बलात्कार से इच्छा बिना अन्य मत के गुरु, अन्य मत के देव तथा वेश, श्रद्धा या प्राचार से अन्य मती बने हुए जैन-साधुग्रो से पालापादि