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________________ तत्त्व विभाग - आठवीं बोल 'सम्यवत्व की आठ - प्रभावना' १३७ ४. पर-पाषण्डी - प्रशंसा : ग्रन्य मति कुतीर्थियों की प्रशसा करना । ५ पर-पाषण्डी - संस्तव : अन्य मति कुतीर्थियो का परिचय करना, उनके पास आना-जाना, उनकी सगति करना । - उपासक दशांग प्रध्ययन १ तथा प्रतिक्रमण से । सातवाँ बोल : 'सम्यक्त्व के पाँच भूषरण ' भूषरण : ( जैसे ग्राभूषणो से नारी की बाहरी शोभा बढती है। वैसे ही ) जिस गुरण या कार्य से सम्यक्त्व की शोभा बढे, उसे 'सम्यक्त्व का भूपरण' कहते है । १. कुशलता : जिन - शासन में कुशल ( चतुर ) हो । २. प्रभावना : बहुश्रुतादि ८ बोलो से जिन शासन की प्रभावना करे । करे । ३. तीर्थ- सेवा : जिन - शासन के चतुर्विध सघ की सेवा ४. स्थिरता : जिन - शासन से डिगते हुए पुरुषो को जिन - शासन में स्थिर करे । ५. भक्ति : जिन- शासन मे भक्ति रक्खे | - प्रवचनसारोद्धार ग्रंथ से । आठवाँ बोल : 'सम्यक्त्व की आठ प्रभावना' प्रभावना : जिस गुरण, लव्धि या क्रिया से लोगो मे सम्यक्त्व की ( जैन धर्म की ) प्रभावना हो, उसे 'सम्यक्त्व की प्रभावना - कहते है तथा सम्यक्त्व की प्रभावना करने वाले को 'प्रभावक' कहते हैं ।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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