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तत्त्व विभाग - आठवीं बोल
'सम्यवत्व की आठ - प्रभावना'
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४. पर-पाषण्डी - प्रशंसा : ग्रन्य मति कुतीर्थियों की प्रशसा
करना ।
५ पर-पाषण्डी - संस्तव : अन्य मति कुतीर्थियो का परिचय करना, उनके पास आना-जाना, उनकी सगति करना । - उपासक दशांग प्रध्ययन १ तथा प्रतिक्रमण से ।
सातवाँ बोल : 'सम्यक्त्व के पाँच भूषरण '
भूषरण : ( जैसे ग्राभूषणो से नारी की बाहरी शोभा बढती है। वैसे ही ) जिस गुरण या कार्य से सम्यक्त्व की शोभा बढे, उसे 'सम्यक्त्व का भूपरण' कहते है ।
१. कुशलता : जिन - शासन में कुशल ( चतुर ) हो ।
२. प्रभावना : बहुश्रुतादि ८ बोलो से जिन शासन की प्रभावना करे ।
करे ।
३. तीर्थ- सेवा : जिन - शासन के चतुर्विध सघ की सेवा
४. स्थिरता : जिन - शासन से डिगते हुए पुरुषो को जिन - शासन में स्थिर करे ।
५. भक्ति : जिन- शासन मे भक्ति रक्खे |
- प्रवचनसारोद्धार ग्रंथ से ।
आठवाँ बोल : 'सम्यक्त्व की आठ प्रभावना'
प्रभावना : जिस गुरण, लव्धि या क्रिया से लोगो मे सम्यक्त्व की ( जैन धर्म की ) प्रभावना हो, उसे 'सम्यक्त्व की प्रभावना - कहते है तथा सम्यक्त्व की प्रभावना करने वाले को 'प्रभावक' कहते हैं ।