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१३६ ] जैन सुबोध पाठमाला --भाग १
पहचान हो, उसे 'सम्यक्त्व का लक्षण' कहते है।
१. शम (प्रशम): अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ का उदय न होने दे या शत्रु-मित्र पर समभाव रक्खे ।
२. सवेग : धर्म को श्रद्धा और मोक्ष की अभिलाषा रक्खे ।
३. निर्वेद : सासारिक काम-भोगो मे उदासीन रहे तथा प्रारम्भ परिग्रह का त्याग करे ।
४. अनुकम्पा : दूसरे जीव को दुखी देख कर या ससारपरिभ्रमण करते हुए देख कर करुणा लावे।
५. आस्तिकता (आस्था) : जिन-वचनो पर विश्वास रख कर दृढ रहे।
~~-उत्तराध्ययन २६, स्थानांग ४ व ज्ञाता १ से ।
छठा बोल : 'सम्यक्त्व के पाँच दूषण (अतिचार)'
दूषण : (जैसे रज से रत्न मलिन (मैला) होता है, वैसे ही)
जिस वात से सम्यक्त्व-रूप रत्न दूषित (मलिन) हो, उसे 'सम्यक्त्व का दूषण (अतिचार)' कहते है।
१. शंका : सूक्ष्म तत्व समझ मे न आने पर जिन भगवान् के वचनो मे शका (सदेह) रखना।
२. काक्षा : अन्य मतियो के तप, आडम्बर,पूजादि देखकर उनकी काक्षा (चाह) करना ।
३. विचिकित्सा : धर्म-क्रिया (करणी) के फल मे गका (सन्देह) करना अथवा त्यागी साधु-साध्वियो के शरीर-वस्त्रादि मलिन देखकर घृणा करना।