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१३४ ] जैन मुबोध पाठमाला -भाग १
तोसरा बोल : 'सम्यक्त्वी के दस विनय'
विनय : सम्यक्त्व उत्पन्न होने पर सम्यक्त्वी धर्मदेव अादि का
जो वन्दन, भक्ति, वहुमान, गुण वर्णन आदि करता है, उसे 'सम्यक्त्वी का विनय' कहते है। १ अरिहत विनय : अरिहन्त भगवान् का विनय करे।
२. अरिहंत प्रज्ञप्त धर्म विनय . अरिहन्त प्ररुपित धर्म का विनय करे।
३. प्राचार्य विनय : आचार्य भगवान् का विनय करे। ४. उपाध्याय विनय : उपाध्याय भगवान् का विनय करे।
५ स्थविर विनय : स्थविर भगवान् ( वहश्रुत और चिरदीक्षित ) का विनय करे।
६. कुल विनय : कुल (एक प्राचार्य के शिष्यो के । समुदाय) का विनय करे।
७. गरण विनय : गण (अनेक प्राचार्यो के गिप्यो के समुदाय) का विनय करे।
८. संघ विनय : चतुर्विध संघ (साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका) का विनय करे।
६. क्रिया विनय : क्रियावान् (क्रिया-पात्र) का विनय करे।
१०. सांभोगिक विनय : जो स्वधर्मी, स्वलिगी हो, उनका विनय करे।
-~ौपपातिक सूत्र से।