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________________ तत्त्व विभाग-अट्ठारहवाँ बोल : 'तीन दृष्टि' [ १२७ ५ क्रोध, ६ मान, ७. माया, ८ लोभ, ह. राग, १०. द्वेष (कपाय मोहनीय से होने वाले), ११ हास्य, १२ रति, १३ अरति, १४ गोक, १५ भय, १६ जुगुप्सा (नो कषाय मोहनीय से होने वाले), १७ वेद (वेद मोहनीय से होने वाला) तथा १८ अन्तराय (अन्तराय से होने वाला)। अन्य प्रकार से अट्ठारह दोषो के नाम : १. अज्ञान, २ निद्रा, ३ मिथ्यात्व, ४ हिसा, ५. झूठ, ६ चोरी, ७ मेथुन (क्रीडा), ८. परिग्रह (प्रेम), ६ क्रोध, १० मान, ११ माया, १२ लोभ, १३ हास्य, १४. रति, १५. अरति, १६ शोक, १७. भय तथा १८ जुगुप्सा । अरिहत के १२ गुरण १ अनन्त ज्ञान, २ अनन्त दगन, ३ अनन्त चारित्र, ४. अनन्त वल-वीर्य ५ दिव्य ध्वनि, ६ भामण्डल, ७. स्फटिक सिंहासन, ८ अशोक वृक्ष, ६ कुसुम वृष्टि, १० देव दुन्दुभि, ११ तीन छत्र और १२ दो चामर । पाँच समिति के नाम १ इर्या समिति (उपयोग से चलना), २ भाषा समिति (उपयोग से बोलना), ३ एषणा समिति (उपयोग से ग्राहार लाना, भोगना), ४. प्रादान निक्षेप समिति (उपयोग से उठाना रखना), ५. परिस्थापना समिति (उपयोग से परठना, त्यागना)। तीन गुप्ति के नाम १ मनोगुप्ति (मन वश में रखना), २ वचनगुप्ति (वचन वश मे रखना) और ३ कायगुप्ति (काया वश मे रखना)। साधुजी के २७ गुण . १-५ पाँच महाव्रत, ६-१० पाँच इन्द्रियो का निग्रह (वश रखना) ११-१४ चार कषायो का , त्याग, १५-१६ तीन सत्य-(क) भाव सत्य, (ख) करण सत्य,
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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