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१२६ ] जैन सुबोध पाठमाला-भाग १
है मोक्ष तत्व के चार भेद __ मोक्ष : १ छूटने को मोक्ष कहते है। २ अात्मा का पूर्ण विशुद्ध
परिणाम । ३ मन-वचन-काया का वियोग एव ४. प्रात्मा के सम्पूर्ण प्रदेशो से सभी कर्मो का सर्वथा क्षय 'मोक्ष' है। (यहॉ मोक्ष-प्राप्ति होने के मार्गों को 'मोक्ष' कहा है।)
मोक्ष के चार भेद १. सम्यग्ज्ञान २. सम्यग्दर्शन (सम्यक् श्रद्धा) ३. सम्यक चारित्र और ४. सम्यक्तप ।
नव तत्वो के पहले विस्तृत अर्थ दिये जा चुके है। १ सक्षेप मे चेतन 'जीव है। २ जड 'अजोव' है। ३ शुभ वन्ध 'पुण्य' है। ४ अशुभ वन्ध 'पाप' है। ५ वन्ध का मार्ग 'पाश्रव' है। ६ वन्ध का अवरोध 'सवर' है। ७ बन्ध क्षय का मार्ग 'निर्जरा' है। ८ दोनो का सयोग 'वन्ध' है। और ६ वन्धन का छूटना 'मोक्ष' है।
अद्वारहवाँ बोल : 'तीन दृष्टि'
दृष्टि: १ श्रद्धा, २ श्रद्धा वाला।
१. सम्यग्दृष्टि : चार कर्म या अट्ठारह दोप रहित तथा बारह गुण अरिहत देव को ही सुदेव, पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति पालने वाले या २७ गुणो के धारक निर्ग्रन्थ को ही सुगुरु तथा अरिहत प्ररुपित धर्म को (तत्व को) ही सुधर्म मानना। २. मानने वाला।
अट्ठारह दोपो के नाम १ अज्ञान (ज्ञानावरणीय से होने वाला), २ निद्रा (दर्शनावरणीय से होने वाला), ३. मिथ्यात्व (दर्शन मोहनीय से होने वाला), ४. अवत,