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१२२ ] जन सुबोध पाठमाला-भाग १ योग। ६. प्रारणातिपात (हिंसा करना) ७. मृषावाद (झूठ वोलना) ८. प्रदत्तादान (चोरी करना) है. मैयुन (सेवन करना) १०. परिग्रह (रखना) ११. श्रोत्रेन्द्रिय वश में न रखना । १२. चक्षुरिन्द्रिय वश मेन रखना। १३. घ्राणेन्द्रिय वश में न रखना। १४. रसेन्द्रिय वश में न रखना। १५. स्पर्शेन्द्रिय वश मे न रखना। १६. मन वश में न रखना । १७. वचन वश में न रखना। १८. काया वश मे न रखना। १६. भंड उपकरण अयाना से उठाना, अयतना से रखना । २० सूई कुशाग्नमात्र अघतना से उठाना, अयतना से रखना।
६ सवर तत्व के २० भेद संबर : १ क्पाट या वाँध (पटिये) को 'सवर' कहते हैं।।
२ अात्मा के सम्यक्त्वादि शुभ परिणाम, ३ मन-वचनकाया के यतनादि शुभ योग तथा ४. उन दोनो के द्वारा । यात्मा-रूप नौका या (तालाव में) मे पाप-कर्म-रूप जल का आगमन रुकना या प्रात्मा-रूप वस्त्र मे पाप-कर्म रूप रज का लगाव कना 'सवर' है। (अयोग तथा पुण्य का रुकना भी सवर है, परन्तु वह छन्नस्थों से अशक्य होने से उपदेश योग्य नहीं है। यहाँ आत्मा के सम्यक्त्वादि शुभ परिणाम तथा मन-वचन-वाया के यतनादि शुभ योग को सवर कहा है।)
१ सम्यक्त्व २. व्रत (प्रत्याख्यान लेना) ३. अप्रमाद (प्रमाद न करना) ४. अकपाय (कपाय न करना। ५. शुभ योग । ६. प्राणातिपात विरमरण (हिसा न करना) ७. मृषावाद विरमरण (भूठ न बोलना) ८. अदत्तादान विरमरण (चोरी न करना) ६. मयुन विरमरण (मैथुन का सेवन न करना) १०. परिग्रह विरमण (परिग्रह न रखना) ११. श्रोत्रेन्द्रिय वश मे रखना