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तत्त्व विभाग--चौदहवाँ बोल' 'छोटी नव तत्व के ११५ भेद' [ १२१
१. प्राणातिपात : जीवहिंसा २. मृषावाद : झूठ । ३. अदत्तादान : चोरो। ४. मैयुन : अब्रह्मचर्य-कुशील । ५. परिग्रह · धर्मोपकरगो से अन्य धन, भूमि आदि रखना तथा धर्मोपकरणो पर ममता रखना । ६: क्रोध : रोष । ७. मान : अहकार। ८. माया : छल, कपट। ६. लोभ : लालच और तृप्रगा। १०. राग : प्रेम। ११. द्वेष : वैर, विरोध । १२. कलह : क्लेश, लडाई। १३. अभ्याख्यान : कलक लगाना। १४ पैशुन्य : चुगली खाना। १५. पर-परिवाद : निन्दा करना । १६. रति : मनोज्ञ विषयो में आनन्द । भरति : अमनोज्ञ विषयो मे खेद-विषाद। १७. माया मृषा : कपट सहित झूठ। १८. मिथ्यादर्शन शल्य : कुदेव, कुगुरु, कुधर्म, कुशास्त्र पर श्रद्धा-रूप मोक्ष-मार्ग के कॉटे।
५. आश्रव तत्व के २० भेद साश्रव · १. द्वार या नाले को 'पाश्रव' कहते हैं। २ आत्मा के
मिथ्यात्वादि अशुभ परिणाम । ३. मन-वचन-काया के अयतनादि अशुभ योग तथा ४ उन दोनो के द्वारा आत्मा-रूप नौका (या तालाब) मे पाप-कर्म-रूप जल का आना (या प्रात्मा-रूप वस्त्र मे पाप-कर्म-रूप रज का लगना) 'पाश्रव' है,। (यतनादि शुभ योग और उसके द्वारा पुण्य का पाना भी 'पाथव' है, पर वह पाप श्राश्रव को रोकने वाला होने से 'सवर' माना गया है। यहाँ आत्मा के मिथ्यात्वादि अशुभ परिणाम और मन-वचन-काया के अयतनादि अशुभ योग को
'आश्रव' कहा है।) , १० मिथ्यात्व (सेवन करना) २. अव्रत (व्रत प्रत्याख्यान न लेना) ३. प्रमाद (करना) ४. कषाय (करना) ५. अशुभ