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________________ १२० ] जैन सुबोध पाठमाला-भाग १ का सहायक तथा पथ्य रूप है। (यहाँ पुण्य का वन्ध कराने वाले आत्मा के अन्न-दानादि शुभ परिणाम तथा मन-वचन-काया के अन्न-दानादि शुभ योग को पुण्य कहा है)। १. अन्न-पुण्य : धर्म भाव या अनुकम्पा भाव से अन्न (अर्थात् शाकाहारी भोजन) देना। २. पान-पुण्य : पानी देना । ३. वस्त्र-पुण्य : वस्त्र (कपडा) देना। ४. लयन-पुण्य : रहने के लिए घर, स्यानादि देना। ५. शयन-पुण्य : सोने-बैठने के लिए शय्या-पासनादि देना। ६. मनःपुष्य : ज्ञानादिक धर्म के लिए भाव (या दानादिक धर्म के भाव) तथा जीव-रक्षा-रूप अनुकंपा के भाव रखना। ७. वचन-पुण्य : धर्म-वचन, अनुकपा-वचन श्रादि शुभ वचन बोलना । ८, काय-पुण्य : वैयावृत्य, जीव-रक्षा आदि शुभ क्रिया करना। ६. नमस्कार-पुप्य : गुणवान को नमस्कार करना। ४. पाप तत्व के १८ भेट पाप : १. जो आत्मा को मलिन करे, उसे 'पाप' कहते हैं। २ आत्मा के प्राणातिपात आदि अशुभ परिणाम ३ मनवचन-काया के प्राणातिपातादि अशुभ योग ४ उन दोनो के द्वारा आत्मा के साथ बँधे हए अशुभ प्रकृति वाले मलिन कर्म पुद्गल तया ५ उन पाप-कर्मो के कटु फल 'पाप' है। पाप का उपार्जन करना बहुत सरल है, पर उसका कटु फल भोगना बहुत कठिन है। पाप धर्म का विरोधो तथा अपथ्य-रूप है। (यहाँ पाप का वन्ध कराने वाले आत्मा के प्राणातिपातादि अशुभ परिणाम तथा मन-वचनकाया के प्राणातिपातादि अशुभ योग को 'पाप' कहा है।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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