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तत्त्व विभाग — चौदहवाँ बोल - 'छोटी नव तत्व के ११५ मेद' [ १२३
१२. चक्षुरिन्द्रिय वश में रखना १३. घ्राणेन्द्रिय वश में रखना १४. रसेन्द्रिय वश मे रखना १५. स्पर्शेन्द्रिय वश में रखना १६ सन वश में रखना १७. वचन वश से रखना १८. काया वश में रखना १६. भड उपकरण यतना से उठाना, यतना से रखना २० सूई कुशाग्र मात्र यतना से उठाना, यतना से रखना ।
७. निर्जरा तत्व के १२ भेद
निर्जरा : १. जीर्ण होकर भिन्न होने को निर्जरा कहते हैं । २. आत्मा के धर्म-ध्यानादि शुभ परिणाम ३. मनवचन काया के वेयानृत्य आदि शुभ योग तथा ४. उनके दोनों के द्वारा ग्रात्मा - रूप नौका ( या तालाब ) मे से पाप-कर्म-रूप जल का निकलना ( या आत्मारूप वस्त्र मे से पाप-कर्म-रूप रज का निकलना ) निर्जरा है | ( विपाक से होने वाली ग्रकाम निर्जरा या बाल तप आदि से होने वाली निर्जरा भी निर्जरा है, पर वह आदरणीय न होने से उपदेश योग्य नही है । प्रयोग से पुण्य की निर्जरा होना भी निर्जरा है, परन्तु वह भी छद्मस्थो से अशक्य होने के कारण उपदेश योग्य नही है । यहाँ आत्मा के ध्यानादि शुभ परिणाम तथा मन-वचन-काया के वैयावृत्यादि शुभ योगो को निर्जरा कहा है ।)
१. अनशन : १. भोजन या भोजन-पान न करना ( उपवास करना ) । इसी प्रकार २ वस्त्र ३ पात्र न रखना, ४. क्रोधादि न करना भी अनशन है ।
२. ऊनोदरी : १ भूख से कम भोजन करना । इसी प्रकार २. वस्त्र ३. पात्र कम रखना ४. कोधादि कम करना भी 'ऊनोदरी' है ।