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११८ ] जैन सुवोध पाठमाला- भाग १
वह भूत, भविष्य और वर्तमान तीनो काल मे सदा
शाश्वत है। १- २ सूक्ष्म एकेन्द्रिय के दो भेद अपर्याप्त और पर्याप्त ३ -४ बादर एकेन्द्रिय के दो भेद अपर्याप्त और पर्याप्त ५-६ द्वीन्द्रिय के दो भेद यपर्याप्त और पर्याप्त ७- ८ त्रीन्द्रिय के दो भेद अपर्याप्त और पर्याप्त ९-१० चतुरिन्द्रिय के दो भेद अपर्याप्त और पर्याप्त ११-१२ असज्ञी पञ्चेन्द्रिय के दो भेद अपर्याप्त और पर्याप्त १३-१४ संज्ञा पञ्चेन्द्रिय के दो भेद अपर्याप्त और पर्याप्त
सूक्ष्म जो काटने से कटे नही, छेदने से छिदे नही, भेदने से भिदे नही, जलाने से जले नही, रोकने से रुके नहीं, एक या अनेक जोवो के शरीर मिलने पर भी ऑखो से दिखाई दे नही, केवल-ज्ञान से दिखाई दे (छन्नस्थ न जान सके । केवली भगवान् के ज्ञानगम्य हो), उसे सूक्ष्म कहते हैं।
बादर : जो काटने से कटे, छेदने से छिदे, भेदने से भिदे, जलाने से जले, रोकने से रुके, एक या अनेक शरीर मिलने पर आँखो से भी दिखाई दे (छद्मस्थ भी जान सके), उसे वादर कहते है।
सज्ञी : मन. पर्याप्ति सहित जीव । असंज्ञी : मन पर्याप्ति रहित जीव ।
२ ग्रजीव तत्व के १४ भेद अजीव : जो उपयोग अर्थात् ज्ञान-शक्ति रहित हो, अर्थात् जो
जड लक्षण हो, उसे 'अजीव' कहते है। वह सुख दुख का अवेदक, पर्याप्ति, प्राण, योग, उपयोग ( अादि रहित, आठ कर्मों का अकर्ता और अभोक्ता है।