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तत्त्व विभाग-चौदहवाँ बोल : 'छोटी नव तत्व के ११५ भेद' [ ११७
८. अन्तराय कर्म : आत्मा के वीर्य गुण मे अन्तराय (विघ्न) डालने वाला कर्म। याचको को राजा से मिलने वाले दान मे विघ्न डालने वाले 'भण्डारी' के समान ।
__ इन आठ कर्मो मे से ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय-ये चार कर्म घातीकर्म है। जो आत्मा के भावात्मक गुरगो को नाश करे, उसे घातिकर्म कहते हैं । आत्मा के भावात्मक गुण चार हैं-१ ज्ञान, २ दर्शन, ३ सम्यक्त्व-चारित्र तथा ४. वीर्य । जो आत्मा के भावात्मक गुणो का नाश न करे, किन्तु अभावात्मक गुणो का नाश करे, उसे अघाति कर्म कहते है। आत्मा के अभावात्मक गुण चार हैं-१ निराबाधत्व, २ अमरत्व, ३. अमूर्तत्व और ४. अगुरुलवुत्व । आठ कर्मो मे मोहनीय कर्म सवसे प्रबल, शेष तीन घातिकर्म मध्यम तया चार अघातिकर्म सबसे दुर्बल है।
चौदहवाँ बोल : 'छोटी नव तत्व के ११५ भेद' तत्व : वस्तु (पदार्थ) के वास्तविक स्वरूप को 'तत्व' कहते है।
मोक्ष-प्राप्ति के लिए जिन्हे जानना आवश्यक है, उन्हे यहाँ तत्व कहा गया है।
१. जीव तत्व के १४ भेद
जीव : जिसमे उपयोग अर्थात् ज्ञानशक्ति हो, अर्थात् जो चेतना
लक्षण हो, उसे 'जोव' कहते हैं। वह सुख-दुख का वेदक (अनुभव करने वाला) पर्याप्ति, प्राण, योग, उपयोग आदि सहित, आठ कर्मों का कर्ता (करने वाला) और उनका भोक्ता (भोगने वाला) है।