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१०४ ] जन सुवोध पाठमाला--भाग १
सामायिक मे हानि हो जाय, तो भी योग में लाभ ही अधिक रहेगा। इसलिए भी सामायिक सतिचार होते
हुए भी अवश्य करते रहना चाहिए। प्र० • हम अणुव्रत-गुरगव्रत धारण न करें, दिन रात के २६
भाग तक बड़े-बडे पाप करते रहे और केवल एक
सामायिक कर ले, तो उपसे क्या लाभ है ? उ० • कोई विशेष लाभ नही। क्योकि शेष २६ भाग तो पाप
में जाते ही है। साथ ही साथ उन पापो के कारण सामायिक के समय मे भी विचारो की अधिक पत्रिता
और अच्छे विचारो की अधिक स्थिरता नही रह पाती। इसलिए आप अणुव्रत-गुणवत धारण कीजिए अर इस
प्रकार दिन-रात्रि को अधिक सफल वनाइए। प्र० . अणुवत-गुणव्रत धारण न करने के क्या कारण है ? उ० : अणुव्रत-गुणव्रत धारण न करने के दो कारण है :
१. स्वय मे रही हुई पाप की अधिक रुचि और २ कुटुम्ब, समाज, राज्य आदि दूसरो मे रही हुई अनीति व कुरीति । शुभ भावना और पुरुपार्थ मे दृढता लाने पर पहला कारण शीघ्र और वहुत अशो मे दूर हो सकता है और दूसरा कारण भी कुछ समय से कुछ अश तक दूर हो सकता है। अत अाप भावना और पुरुपार्थ कीजिए।
अणुवत-गुरगव्रत धारण बहुत करना कठिन नही है। प्र० यदि धारण न कर सके, तो ? उ० · तो भी सामायिक करने मे आत्मा को कुछ लाभ ही है ।
१. जसे सारे दिन अडियल रहने वाला या उत्पय में चलने वाला घोडा यदि ४८ मिनिट मे ५ मिनिट भी - सुपथ पर चले, तो इसमे कुछ लाभ ही है, हानि नहीं ।