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________________ पाठ २५ -- 'सामायिक' प्रश्नोत्तरी [१०३ ४. अणुप्पेहा- अनुप्रेक्षा, अर्थात् सीखे हुए तत्वज्ञान को, धर्म-कथाओ को, स्तुतियो को तथा प्राप्त किये हुए समाधान को दुहराते हुए उस पर चिन्तन करना, बारह भावनाएं भाना। प्र० : सामायिक शुद्ध और उत्तम कसे हो ? उ० सामायिक के समय चारो आलवनों से धर्म-ध्यान करते रहने पर प्राय मन पाप मे नही जाता। यदि कभी चला जाय, तो पुन शीघ्र उससे लौट आता है। मन पाप मे चले जाने पर तत्काल उसे धर्म मे जोड़ने के साथ ही 'मिच्छा मि दुक्कडं' देना (कहना) चाहिए। इस प्रकार करते रहने पर सामायिक नित्य अधिक शुद्ध और उत्तम होती जायगी। वहुत ध्यान रखने पर और बहुत प्रयत्न करने पर भी सामायिक मे मन थोडा-बहुत पाप मे वला ही जाता है, जिससे सामायिक मे अतिचार लग जाता है। अत जब तक निरतिचार सामायिक करने का योग्यता न आवे, तब तक सामायिक कैसे की जाय ? उ० · १ किसो भो काम को पूरा शुद्ध करने को योग्यता पहले नहीं आती। फिर धर्म के काम मे तो पहले योग्यता श्राना बहुत कठिन है। योग्यता काम करते-करते धीरेधीरे ही आती है। जो पहले योग्यता आने की प्रतीक्षा मे काम नहीं करता, वह योग्यता नहीं पा सकता, वरन् उसके लिए योग्यता पाने का मार्ग ही दूर हो जाता है। इसलिए सामायिक सातिचार हो, तो भी सामायिक करते रहना चाहिए, २ दूसरी बात यह भी है कि ध्यान और प्रयत्न रखते हुए भी सामायिक मे अतिचार लगकर प्र०
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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