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८६ ] जन सुवोध पाठमाला--भाग १ प्र० : तीर्थंकर चन्द्रो से अधिक निर्मल कैसे ? उ० . चन्द्र मे कुछ कलक (कालापन) दीखता है, पर तीर्थंकरों
मे चार घाति-कर्म-रूप कलक नहीं होता, इसलिए वे
चन्द्रो से अधिक निर्मल है। प्र० तीर्थकर सूर्यो से अधिक प्रकाश करने वाले कसे ? उ० : सूर्य कुछ ही क्षेत्र तक प्रकाश करता है, पर तीर्थकर
अपने केवल जान से सव क्षेत्रो को जानते हैं और प्रकाशित करते हैं। इसलिए तीर्थंकर सूर्यों से अधिक प्रकाश करने वाले हैं।
पाठ २२ वाईसवाँ ७. नमोन्धुणं : शकस्तव का पाठ
(पहला) नमोत्युरणं अरिहंतारणं भगवंतारणं ॥१॥ प्राइगराणं तित्थयराणं सयं संबुद्धारणं ॥२॥ पुरिसुत्तमारणं पुरिससोहारणं पुरिस-वर-पुंडरीयारणं पुरिस-वरगंधहत्थीणं ॥३॥ लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं ॥४॥ अभयदयाणं चवखुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयार्ण जीवदयाणं बोहिदयाणं ॥५॥ धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्म