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________________ पाठ २२-नमोत्युणं : शकस्तव का पाठ [८७ सारहीणं धम्म-वर-चाउरंत-चक्कवट्टोणं ॥६॥ 'दीवो ताणं सरणं गई पइट्ठा', अप्पडिहय-वर-नारण-दंसरणधराणं, विअट्टछउमाणं ॥७॥ जिरगाणं जावयाणं तिनाणं, तारयाण बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोयगाणं ॥८॥ सव्वन्नूणं सत्वदरिसोणं, सिव-मयल-मरुप-मणंत-मक्खय मवावाह-मपुरणरावित्ति-सिद्धिगइ-नामधेयं ठाणं सपत्ताणं, नमो जिरणाणं जियभयाणं ॥६॥ (दूसरा) नमोत्थुणं . सिद्धिगइ नामधेयं ठाणं संपाविउ कामाणं । नमो जिरगाणं जियभयाणं । शब्दार्थ . नमोत्थुरग नमस्कार हो । किनको? अरिहंताणं सभी अरिहन्त। भगवन्ताणं = भगवन्तो को। अरिहत भगवान् स्वयं कैसे हैं ? प्राइगराणं =धर्म की आदि करने वाले। तित्थयराणं-धर्मतीर्थ की रचना करने वाले। सयं-स्वय ही। संबुद्धारणंबोध पाने वाले। अरिहत भगवान् सबमे कैसे हैं ? पुरिसुत्तमारणं = सब पुरुषो मे श्रेष्ठ। पुरिस सब पुरुषो मे । व्याकरण की दृष्टि से 'दीव-ताणसरप-गई-पइद्वारणं' पाठ होना चाहिए। किन्तु 'उववाइयसुत' मे उपर्युक्त पाठ ही है।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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