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व्यवहार होता है। अथवा पर्याप्त नामकर्म के उदय की अपेक्षा से उन जीवों के पर्याप्तपना समझ लेना चाहिये। ___ यहां पर पर्याप्त नामकर्म के पदय से जिसके छहों पर्याप्तियां पूर्ण हो चुकी हैं उसी मनुष्य को पर्याप्त मनुष्य कहा गया है, इससे यह बात मुगमता से हर एक की समझ में भा जाती कि पर्याप्त मनुष्यों में गुणगानों का कथन द्रव्य शरीर की मुग्यता मही किया गया है। जिस प्रकार पर्याप्त पोर अश्याल के सम्बन्धसे यह कथन है मसी पकार माग के सूत्रों में भी समझना चाहिये।
मानुषी (द्रव्यत्री) के गुपस्थान मसिणीम मिच्छाडि सासणसम्माइलिटाणे सिया पञ्जसियामो सिया अपज्जत्तियानो ।
(सूत्र ६२ पृ० १६६ धवनाम) अर्थ-मानुपियों (व्यत्रियों) में मिथ्याष्टि और सासादन ये दो गुणस्थान पयांम अवस्था में भी होते है और अपर्याप्त अवस्था में भी होते हैं।
इस १२और इसके भागे के १३ वें सत्र को कुछ विद्वानों ने विवादस्य बना लिया इन दोनों सत्रों में बताये गये मामुनियों के गुणवानों को द्रव्यत्रीकन बता कर भावी पाते। परन्तु उनका कहना पर्याप्ति पर्याप्त सम्मान
गये समस्त पूर्व सूत्रों के कान से और इस सूत्र मनसे