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करावा है। इसमा खुलासा बिरेचन होने पर भी यो पटसारखागम के समस्त प्रकरण चौर समाव करन को भारत की अपेक्षा बातेहै और द्रव्यद (म्बशरीर) की मुख्याचा निषेध करतो.
होने इस प्रकार को एक पर्याप्ति कार्यानि सम्बम्धी गुणस्थान पवन को पढ़ा और समझा भी है या नहीं? सूत्रों के अभिभाव से त्या विस्त उनके धन पर मारपये होता है। एवं मणुस्स पजत्ता। (सन १ पृ. १६६ धवन)
मर्थ-जैसा सामान्य मनुष्य के लिये विधान किया गया। साही पर्याप्त मनुष्य के लिये समझना चाहिये। इस सूत्रकी
याख्या में कहा गया कि. कई तस्य पर्याप्तत्वं ! न द्रव्याकिनगण्यात मोदनः पच्चत इस्यत्र यया तन्दुवानामेवोदनव्यपदेशस्तवाऽपर्याप्तवावा
यामप्यत्र पर्याप्तव्यबहारोन विध्यते इति। पर्याप्वनामको. . दयापेक्षया का पर्याप्तना। .
बर्थ-जिसकी शरीर पर्याप्ति पूर्ण नहीं हुई से पर्याप्तक से कहा जाएगा!
उत्तर-यह ठीक नहीं है क्योंकि द्रव्याधिक नय की · अपेक्षा इसके भी पर्याप्तपना बन जाता है जिस प्रकार भात पक रहा ऐसा करने से बालों को भात काबा उसी प्रभार जिसके सभी पत्तियां पूर्ण होने वाली है ऐसे जीव के अपर्याप्त पापा में भी नित्यपप्तिकावस्था में मी) अप्पिनेच