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कि पर्याप्त अपर्याप्त पदों का सम्बन्धवल द्रव्यशरीर से ।
और उनी पर्याप्त अपर्याप्त द्रव्य शरीर (व्यवेद) साप गुणस्थानों को घटित किया गया। यहां तक बताया गया कि जिस जीव के देवायु का बन्ध नहीं हुवा या उस पर्याय में नही होगा अथवा शेष तीन मायुषों में से किसी भी भायु का बन्ध हो चुकाो तो इस जीव को उस पर्याय में अरणवत और महावत नहीं हो सकते हैं। यह बात ज्य शरीर की पात्रता सं कितना गहरा विनामाको सम्बन्ध रखती। यह बात पाठक विद्वान मच्छी तरह समझ ले।
दूसरी बात धवलाकार को व्याख्या से और गोम्मतसार कर्मकांड की गाथा का उन्ही के द्वारा प्रमाण देने में यह भी अच्छी तरह सिम हो जाती है कि इस पालि भपर्याप्ति प्रकरण में जैसा इस पटखएडागम सिद्धांत शाब का ध्यवेद की मुख्यता का कथन है साली गोम्मटसार का भी कथन द्रव्यरेद की मुख्यता का। धवनाकार ने गोम्मटसार का प्रमाण देकर दोनों शाखों का एक रूप में ही प्रतिपादन स्पट कर दिया है। भावपक्षी विद्वान अपने नखी में पटसएडागम के १३६ सूत्र का विचार करने के लिये पटखएडागम माणों को छोड़ चुके हैं लोग प्रायः बहुभाग प्रमाण गोम्मटसार ही दे रहे है और यह पता रहे किगोम्मटसार जैसे भाववेद का निरूपण करताहै। से पटकरागम भी भाववेद का निरूपण करहै। परन्तु