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(४८) ऐसा उनका कहना प्रन्याशय विस्त। इस बात को हम पट. खरडागम से वो यहां बता रहे है, भागे गोम्मटमार के प्रमाणों से भी बतायंगे कि वह भी द्रव्यवेद का निरूपण करता है। और पटवण्डागम तथा गोम्मटसार दोनों च कथन एक रूप मेंहै। जैसा कि ऊपर के प्रमाण से धवलाकार ने स्पष्ट कर दिया है।
अब यहां पर तिर्यच योनिमती (तिर्यच व्यत्री) का सूत्र लिखते हैं
परिदिय तिरिक्सा जोणिणीसुमिच्छाडि सासणसम्माट. ठाणे सिया पत्तियामो सिया अपजत्तियामो।
(मूत्र ८७ पृष्ठ १६४ पवन) अर्थ सुगम । इस सूत्र का स्पष्टीकरण करते हुये धवलाकार निखते हैं कि
सासाइनो नारकवि सियदपि नासादीति वा द्वयोः साधम्यांमावतो दृष्टांतानुपपत्तेः।
(पृष्ठ १६४ धवला) अथ-सासाइन गुणवान बाला जीव मरकर जिस प्रकार मारकियों में सम नही होता है, उसी प्रकार तिबंगों में भी स्प नहीं होना चाहिये ?
तर-यह शब ठीक नहीं है, बरण नारसी पोर नियों पर्य नहीं पाया आता। इसलिये नारकियों