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६३२ स्त्रका मुख्य विषय योगमार्गणा है। - संयताद सूत्र में सर्वथा असंभव है।
भवक्रम से वर्णन करते हुए योग मार्गणा का विवेचन करते हैं, उसी बोग मार्गगा के भीतर १३वां सूत्र है। मौर वह द्रव्यखी के स्वरूप का ही निरूपक है। क्रमबद्ध प्रकरण को पक्षमोह शून्य सद्बुद्धि और ध्यान से पढ़ने से यह बात साधारण जानकार भी समझ लेंगे कि यह कथन द्रव्य शरीर का ही निरूपक है। क्रम पूर्वक विवेचन करने से ही समझमें पासकेगा इसलिये कुछ सूत्र क्रम से हम यहां रखते हैं के १३वां सूत्र कहेंगे। ___ जोगाणुवादेण अस्थि मण जोगी, वचि जोगो, काय जोगी चदि।
(सूत्र ४७ पष्ठ १३६ धवल) अर्थ सुगम
धवलाकार ने द्रव्य मन और भाव मन के विवेचन से यह पष्ट कर दिया है कि यह सब कथन द्रव्य शरीर का है।
इसके मागे मनोयोग के सत्य असत्य मावि चार भेदों का और उनमें सम्भावित गुणस्थानों का विवेचन किया गया है। उसी प्रकार मागे के सूत्रों में वचन योग के भेदों और गुणस्थानों का वर्णन है। ५६वे सूत्र में शंख के समान धवन और हस्त प्रमाण माहारक शरीर वर्णन है। यह द्रव्य शरीर का विधायी स्पष्ट कथन है।