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अस्थि पुदविकाइया, भाउकाइया, ते उकाड्या, बालकाइया, वणफिइकाइया तलकाइया अकाइया चेदि ।
(सूत्र ३६ १४ १३२ धवला)
अर्थ सुगम और स्पष्ट है
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ये सभी भेद द्रव्य शरीर के ही हैं। भाववेद का नाम भी
यहां नहीं है।
इसके आगे
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पुढविकाश्या दुविधा वादा सुहमा | वादरा दुबिधा पज्जत्ता पत्ता सुहमा दुविधा पज्जत्ता अपज्जत्ता मादि ।
(सूत्र ०-४११४१३४- १३५)
अर्थ
सुगम है
यह लम्बा सूत्र है और पथिवीकाय आदि से लेकर बनस्पतिकाय पर्यंत साधारण शरीर, प्रत्येक शरीर, सूक्ष्म बादर पर्याप्त, अपर्याप्त आदि भेदों का विवेचन करता है। दूसरा ४१वां सूत्र भी इन्हीं भेदों का विवेचक है। यह विवेचन भी सब द्रव्यवेद का हो है ।
आगे इन्हीं पृथिवी काय और नस कार्यों में गुणस्थान बताये गये है जो सुगम और स्पष्ट एवं निर्जिवाद हैं । जिन्हें देखना हो ये ४३ सुत्र से ४५ सूत्र तक धवल सिद्धांत को देखें ।