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ही किये गये हैं। यहां पर भाववेद का कोई उल्लेख नहीं है । धवला टोपा में इस बात का पूर्ण खुलासा है । परन्तु सूत्र ही स्पष्ट कहता है", तब धवला का उद्धरण देना अनुयोगी और लेख को बढ़ाने का साधक होगा । अतः छोड़ा जाता है।
इसके भागे—
वीइंडिया दुबिहा पज्जन्त्ता अपज्जता, सीइंडिया दुबिदा पज्जन्ता अपज्जन्त्ता । चतुरि दिया दुबिहा पज्जता भपज्जता । पंबिंदिया दुबिहा सरणी घसरणी । सरणी दुबिद्दा पज्जता भपज्जता । असरणी दुविधा पज्जत्ता अपज्जता चेदि ।
(सूत्र ३५ पष्ठ १२६ घबला)
अर्थ सुगम है
ये सभी भेद द्रव्य शरीर के ही हैं। भाव पक्षी सभी विद्वान इस षटखण्डागम सिद्धांत शास्त्र को समूचा भाववेद का ही कथन करने वाला बताते हैं और विद्वत्समाज को भी भ्रम में डालने का प्रयास करते हैं वे भय नेत्र स्थोलकर इन सूत्रों को ध्यान से पढ़ लेवें। इन सूत्रों में भाववेद की गन्ध भी नहीं है। केवल द्रव्य शरीर के हो प्रतिपादक हैं।
इसके आगे उन्हीं एकेन्द्रियादि जीवों में गुणस्थान बताये हैं । जो सुगम और निर्विवाद हैं। यहां उनका उल्लेख करना पर्थ है ।
इसके आगे काय मागंणा को भी ध्यान से पढ़ें कायावादेख