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.(२४) प्रकार है
इंदियाणुवादे पस्थि एइंदिया वीइंदिया तोइंदीया चदुरि. दिया पंचिंदिया किंदिया चेदि ।
(सूत्र ३३ पृष्ठ ११६ धवला) इसका अर्थ सुगम है। यहां पर हम इतना कह देना भावश्यक समझते हैं कि उसी सूत्र का हम विशेष खुलासा करेंगे जो सुगम नहीं होगा। और उन्हीं सूत्रों को प्रमाण में देंगे जिनसे प्रकृत विषय द्रव्य शरीर सिद्धि की उपयुक्तता और स्पष्टता विशेष रूप से होगी, यद्यपि सभी सूत्र योग मार्गणा तक द्रव्य शरीर के ही प्रतिपादक हैं परन्तु सभी सूत्रों को प्रमाण में रखने से यह लेख बहुत अधिक बढ़ जायगा । उसी भय से हम सभी सूत्रों का प्रमाण नहीं देंगे। हां जिन्हें कुछ भी संदेह होवे षटखएडागम को निकालकर देख लेवें । मस्तु ।
ऊपर के सूत्र में एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक जीवों का कथन सर्वथा द्रव्य शरीर काही निरूपक है । भाववेद को विवक्षा तक नहीं है। इसका खुलासा देखिये___ एइंदिया विहा वादरा सुहमा। बादरा दुविहा पजता प. पजचा सुहुमा दुविहा पजत्ता अपजत्ता ।
(सूत्र ३४ पृष्ठ १२५ धवना) पर्य सुगम।। ये एकेन्द्रिय जीवों के बादर सूक्ष्म पर्याप्त पौर परर्यात केवल न्यवेद अथवा द्रव्य शरीर की अपेक्षा से