SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्माइट्टी सम्मामिच्छाइट्ठी पसंद सम्माइठ्ठी संजनासंजवाति (सूत्र २६ पृ० १०४ धवल सिद्धांत) अर्थ सुगम है। इस सूत्र को धवला को पढ़िये कथं पुनरसंयत-सम्पदृष्टीनामसत्वमिति न तत्राऽसंयतसम्यग्दृष्टीना मुत्पत्तेरसवात तत्कुतोवगम्यत इतिचेत छसुहेटिमासु पुढवीए जोइसिवण के वरण सव्व इस्टोसु णेदेसु समुपजह सम्माटोदु जो जीवो। प्रत्यार्षात। (पृ० १०५ धवला) इस धवला टीका का स्पष्ट अर्थ यह है कि-तिर्यचिनियों के अपया: काल में असंयत सम्यष्टि जीवों का प्रभाव वैसे माना जा सकता है ? इस शंका के उत्तर में कहा जाता है कि नहीं, यह शंका ठीक नहीं क्योंकि तिर्योचनियों में भसयत सम्यग्दृष्टियों को उत्पत्ति नहीं होती है इसलिये उनके अपर्यातकाल में चोथा गुणस्थान नहीं पाया जायाहै। यह कैसे जाना जाता है? उत्तर-जो सम्यग्दृष्टिजीव होता है वह प्रथम पृथिवीको और कर नीचे को छह पृथिवियों में, ज्योतिपो, व्यन्तर और भवनवासी देवों में और सब प्रकार की खियों में उत्पन्न नहीं होता। इस पार्षवचन से जाना जाता है। यहां पर उत्पत्ति का कथन है। और देवियां मानुषी तथा तिचिनी तीनों (सब) प्रकार की बियों का स्पष्ट कथन है यह द्रव्य स्त्री वेद का स्पष्ट कथन है। यह अर्थ वाक्य है। इसके आगे इन्द्रियानुवाद की अपेक्षा वर्णन है पहास
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy