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(२०) हम करते हैं
धवल सिद्धांत में जिन मार्गणाओं में गुणस्थानों को घटित किया गया है वह पाठ अनुयोग द्वारों से किया गया। वे पाठ अनुयोग द्वार ये है
१-सत्प्ररूपणा २-द्रव्य प्रमाणानुगम ३-क्षेत्रानुगम-स्पर्शनानुगम ५. पालानुगम ६-अन्तरागम ७-भावानुर.म.रुपबहुत्वानुगम।
इन पाठों का वर्णन कम से ही किया गया है, उनमें सबसे पहिले सत्प्ररूपणा अनुयोग द्वार है उसका अर्थ धवनाकारने वस्तु के अस्तित्व का प्रतिपादन करने वाली प्ररूपणा को सत्प्ररूपणा बताया है। जैसा कि
'पस्थित पुण संत अस्थित्तस्सय तदेवपरिमाणं।' इस गाथा द्वारा स्पष्ट किया है। जैसाकि-सत्सत्वमित्यर्थः कथमन्तीवितभावत्वात । इस विवेचन द्वारा धवलाकार ने स्पष्ट किया है इसका अर्थ यह है कि सत्प्ररूपणा में सत् का अर्थ वस्तु की सत्ता है। क्योंकि वस्तु की सत्ता में भाव अन्तभून रहता है। इससे स्पष्ट
कि-सत्परूपणा अनुयोगद्वार जीवों के द्रव्य शरीर का प्रतिपादन करता है, द्रव्य के बिना भाव का समावेश नहीं हो सकता है। जिस वस्तु के मूल अस्तित्व का बोध हो जाता है उस वसु की संख्या का परिमाण द्रव्य प्रमाणानुगम द्वारा बताया गया है ये दोनों अनुयोग द्वार मूल द्रव्य के अस्तित्व और उसकी सख्या