________________
को बताते हैं। आगे के अनुयोग द्वार उस वस्तु के क्षेत्र, स्पर्श, काल आदि का बोध कराते हैं । धवल सिद्धांत के क्रमवर्ती विवेचन को देखने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि धवन सितांत में पहले द्रव्यवेद विशिष्ट शरीरों का निरूपण किया गया है और नन्ही द्रव्य शरीर विशिष्ट जीवों की गणना बनाई गई है। बिना मूल भूत द्रव्यवेद के निरूपण किये, भाववेद का निरूपण नहीं हो सकता है और उसी प्रकार का निरूपण धवल शास्त्र में किया गया है।
इस प्रकरण में धवन सिद्धांत में पहले चौदह गुणस्थानों के निरूपक सूत्र हैं, उनके पीछे १४ मार्गणामों का कथन सूत्रों द्वारा किया गया है, इस कथन में द्रव्यवेद के सिवा भाववेद का कुछ भी वर्णन नहीं है । भागे उन १४ मार्गणामों में गुणस्थान पटित किये गये हैं, वे गुणस्थान उन मार्गणाओं में उसी रूप से पटत किये गये हैं जहां जो द्रव्य शरीर में हो सकते हैं। और भागे की वेद मागणा, कषाय मागेणा, ज्ञानमार्गणा मादि मार्गणामों में केवल प्रात्मीय भावों का (वैभाविक और स्वाभाविक) ही सम्बन्ध होने से चौदह गुणस्थानों का समावेश किया गया है। पाचार्य भूतबली पुष्पदन्त ने सत्यरूपणा रूप अनुयोग द्वार को ही शेष और आदेश अर्थात मार्गणा और गुणस्थान इन यो कोटियों में विभक्त कर दिया है। और समूचे ग्रन्थ में मार्गणाभों को बाधार बनाकर गुणस्थानों को यथा सम्भव रूप से