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साथ ही विशेष लक्ष्य सत्ता के पार में बनाये गये मन. भून जीव विशिष्ट-शरीरों को पात्रता के अनुसार गुणस्थान विचार, और प्रादि की चार मारणामों द्वारा मिनिष्ट कथन पर देना चाहिये। फिर सिद्धान्त शास्त्र का रहस्य ममझ में सहज पा जायगा। उसी को हम यह बताते हैं
१४ मार्गणाओं और १४ गुणस्थानों में किस २ मार्गणा में कौन • गुणग्थान संभव हो सकते हैं, बस यही बात पटखण्डागम की धवला टीका के प्रथम खण्ड में घटत की गई है। कर्मों के उदय उपशम क्षय क्षयोपशम और योग के द्वारा उत्पन्न होने वाले जीवों के भावों का नाम गुणस्थान है तथा कर्मोदय-जनित जीव की अवस्था का नाम मारणा है। किन र अवाथाओं में कौन २ स भाव जीव के हो सकते हैं, बस इसी को मागंणामों में गुणस्थानों का संघटन कहते हैं। यही बात धवल सिद्धान्त के प्रथमखण्ड में बताई गई है।
यहां पर इतना विशेष समझ लेना चाहिये कि चौदह मागंणामों में प्रादि की ४ मार्गणाएं जीव के शरीर से ही सम्बन्ध रखती है इसलिये गति, इन्द्रिय, काय पौर योग इन चार मार्ग. णामों में द्रव्य वेद के साथ हो गुणस्थान बताये गये हैं।
जैसे गति मागेणा में चारों गतियों के जीवों का वर्णन है, उसमें नारकी तिर्यच मनुष्य और देव इन चारों शरीर पर्यावों का समावेश है।