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धवला कार ने लाटोका में तथा गोमट्टसारकार तथा गोमट्टसार के टीका-कार ने भी सर्वत्र द्रव्य-वेद का भी निरुपण किया है । जो विद्वान यह कहते हैं कि 'टीकाकारों ने मूल ग्रन्थ में जो द्रव्य वेदादि को बातें नहीं है वे स्वयं अपनी समझ से लिख दो है अथवा उन्होंने भुत की है' ऐसी मिथ्या बातों का निरसन इस श्लोक से हो जाना है। क्योंकि टीकाकारों ने जो भी अपनी टोकाओं में सूत्र अथवा गाय का विशद अर्थ किया है वह सूत्र एवं गाथा के आशय के अनुसार ही किया है।
बस इन्हीं तालिकाओं के आधार पर पटखण्डागम, गोमट्टसार तथा उनकी टीकाओं को समझने की यदि जिज्ञासा और ग्रन्थ के अनुकूल समझने का प्रयत्न किया जायगा तो भाववेद चोर द्रव्यवेद दोनों का कथन इन शास्त्रों में प्रतोत होगा । हम मागे इस ट्रेंक्ट में इन्हीं बातों का बहुत विस्तृत स्पष्टोकरण पटखण्डागम के अनेक सूत्रों एवं गोमट्टपार की अनेक गाथाओं तथा उनकी टाकाओं द्वारा करते हैं ।
बट् खण्डागम के बवला प्रथम खण्ड में वर्णन क्रम क्या है ?
पट खण्डागम के जीवस्थान-सत्प्ररूपणा नामक पवला के प्रथम खण्ड में किस बात का बोन है। और वह वर्णन प्रारंभ से लेकर अंत तक किस क्रम से प्रन्धकार-धाचार्य भूतबली पुष्पदन्त ने किया है, सबसे पहले इसी बात पर लद देना चाहिये