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(१५) यथा संभव शबवेद और द्रव्यवेर दोनों की विवक्षा से वर्णन किया गया है।
इस श्लोक से यह बात प्रगट को गई है कि मानापों में पर्याप्त अपर्याय और सामान्य इन तोन बातों की प्रधानता से कथन । उनमें जहां तक जो संभव गुणस्थान उपयोग पर्याप्त प्राण धादि हो सकते हैं वे सह ग्रहण कर लिये जाते हैं, उस पहण में कहीं द्रव्य वेद की विवक्षा पानाती है, कही पर भाववेद की भा जागी
इस कथन सं वह शंका और समझ दूर हो जाती है जोकि यह कहा जाता है कि "बालापों में भाववेद'का ही सर्वत्र वर्णन मानुषी के चौदह गुणस्थान बतलाये गये है" वह शव इस नये नहीं हो सकती है कि पालापों में ही मानुषी की पर्यात अवस्था में पहला दूसरा य दो गुणस्थान बताये गये हैं, भाव की अपेक्षा ही होता ना सयोग गुणस्थान भी बताया जाता । मता सर्वत्र मालापों में भाववेद का हो कथन है यह कहना प्रसङ्गत एवं ग्रन्थाधार स विरुद्ध है।
चौथे श्लोक का अर्थ यह कि___ मागणामों में एक वेद मार्गणा भी है, वहां मोहनीय कर्म का भेद नोकषाय-जनित परिणाम रूप ही वेद लिया गया है। और कहींगर-गुणस्थान मार्गणामों में द्रव्यवेद का ग्रहण नहीं है फिर षट खण्डागम सूत्रों में द्रव्य-वेद का नामोल्लेख करके कान से किया जासकता १ अर्थात एडागम में गण