________________
(१४) प्राचार्यों ने पट खण्डागम में मार्गणामों और प्रासापों में गुणस्थानों का समन्वय किया है।
दृपर श्लोक का अर्थ यह है कि
जहां पर गतियों का कथन पयाहियों के सम्बन्ध से कहा गया है वहां पर द्रव्य वद के कथन की प्रधानता समझना चाहिये इसी प्रकार जहां तक योग मागंणा, और काय का कथन है वहां तक निश्चय सं द्रव्य वेद के कथन का ही प्राधान्य है। और जहां पर गति के साथ पर्याप्त का सम्बन्ध नहीं है तथा योग बोर काय मागणाका भी कथन पयाप्त के साथ नहीं है वहां कवल भाववेद के कथन की ही प्रधानता समझनी चाहिये । ___ इन दो श्लाको स पट खण्डागम के समरूण। रूप अनुयोग द्वार का विवेचन बताया गया है जो धवल सिद्धान्त के प्रथम भाग में श्रादि के १०० सूत्रां तक किया गया है।
इस कथन सं-सर्वथा भाववेद हो पद खण्डागम में सर्वत्र कहा गया है उसमें द्रव्यवेद का वर्णन कहीं नहीं है इस वक्तव्य पौर समझ का पूर्ण निरसन हो जाता है। तीसरे श्लोक का अर्थ यह कि
पालाप के प्राचार्यों ने तीन भेद बताये है १-पयोत. २अपर्याप्त ३-सामान्य। इनमें अपर्याप्तालाप के निवृत्यपर्याप्तक और नब्ध्यपर्यातक ऐस दो भेद हो जाते हैं। इस अपेक्षा से पालाप के भेद हैं। बस, मागणा, गुणस्थान, को वीस रुपया रूप से इन्हीं चार भेदों में योजना (समन्वय) की गई है।समें