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गुणसंयमपयोलियोगालापाच मार्गणाः । प्रपिताः यथापात्रं द्रव्यभावप्रवेदिभिः ॥शा गत्या साधं पियांतिः योगः कायश्च यत्र है। द्रव्यरदस्तु तत्र स्याभावश्चान्यत्र केवलम ॥२॥ पर्याप्तालापसामान्याऽपर्याप्तालापकाखयः । भोपादेशेषु भान द्रव्येणापि यथायथम ॥३॥ मागेरणासु च यो वेदो मोहकर्मोदयेन सः । सूत्रेषु द्रव्य वेदस्य नामोल्लेखम्ततः कथम ॥५॥ गत्यादिमार्गणामध्ये गुणस्थानसमन्वयः। देहापयाविना न स्याद द्रव्य वेदः स एव । सूत्राशयानुरूपेण धवलाायां तथैव च। गोमट्टसारेष सर्वत्र द्रव्यवेता पितः। ॥६॥
(रचयिता-मक्खननान शास्त्री) इनमें पाले जोक का गह अर्थ है कि
गुणस्थान, संयम, पाप्ति, योग, पालाप, मोर मागेणाएं ये सब द्रव्य और भाव विधान के विशेषज्ञों (पाचार्यों ) ने द्रव्य शरीरकी पात्रता के अनुसार ही प्ररूपण की है। मानवारों गतियों में सा जहां शरीर होगा, जैसी पर्याप्त (चौर मा. बांति) होगी, जैसा बांग-काययोग या मिश्रकाय होगा और वैवामानाप-यांत, विपर्यास, सामान्य-होगा उसी के अनुसार
गुलम्मान और संयम रह सकेंगे। इसी सिद्धान्त को लेकर