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शाख को दिगम्बर धर्म के विपरीत साधना का आधार बना डालें और जब विद्वानों एवं स्यागियों में विचार विमर्ष हो रहा है तब तक तो उन्हें सजा पर जोड़ने का साहस कदापि करना उचित नहीं था ।
जिस समय प्रो० हीरा लाल जी ने केवल हिंदी अर्थ में सव्यत पत्र जोड़ कर छपा दिया था तब प० व शीधर जी (शोल पुर) ने यहां तक लिखा था कि इन छपे हुए सिद्धान्त शाखों को गङ्गा के गहरे जल बहुत कुण्ड में डुबा देना चाहिये, और
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प्रो० हीरालाल जी द्वारा उस सब्जद पद के हिंदी अर्थ में जुड़ा ने से ये शब्द भी उन्होंने लिखे थे कि " ऐसा भारी अनर्थ देवा
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कर जिस मनुष्य की आंखों में खून नहीं उतरता है वह मनुष्य 'नहीं' पाठक विचार करें कि कितनी भयङ्कर बात प० बन्शी पर जी ने उस समय सज्जद पद को हिन्दी अनुवाद में जोड़ देने पर कही थी, परन्तु विचारे प्रो० सा० ने तो डरते डरते उस प को केवल हिन्दी में हो ओडा है, किन्तु प० बन्शी पर जी के छोटे भाई १० खूब चन्द जी ने तो मूख सूत्र में ही सब्जद पर को जोड़ कर तांबे के पत्र में खुदवा डाला है, जब वे ही पं० बन्शी घर जी अपने छोटे भाई द्वारा इस कृति को देखकर उल्टा कहने ★ लगे हैं, जो समाज के प्रौढ़ विद्वान इस संयत शब्द से दिगम्बर धर्म के सिद्धान्त का घात समझ कर उस सार पद को निकलना-ना चाहते हैं, उन विद्वानों को १० बन्शीधर जी मिध्यादृडि चोर महाशरी बिक रहे हैं। हमें ऐसी निरंकु लेखनी एवं